वन्दे सदा स्वदेशम्
उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम् ।
वर्षं तद् भारतं नाम भारती यत्र संततिः ॥
समुद्र के उत्तर में और हिमालय के दक्षिण में जो पवित्र भूभाग स्थित है, उसका नाम भारतवर्ष है, जहाँ भरत के संतति निवास करते हैं ।
The country that lies north of the ocean and south of the snowy mountains is called Bharatam, there dwell the descendants of Bharata.
वन्दे सदा स्वदेशं एतादृशं स्वदेशम् ।
गङ्गा पुनाति भालं रेवा कटिप्रदेशम् ॥ ध्रु॥
गंगा जिस भारत देश के ललाट भाग को अतीव उत्तुङ्ग गंगोत्री के पावन उद्गम स्थल से निकलकर इस देश को पवित्र करती है, तथा रेवा (नर्मदा) नदी इस देश के कटि प्रान्त (मध्यभाग) को पवित्र करति है, ऐसे इस अपने स्वदेश (भारतभूमि) की मैं वन्दना करता हूँ ।
I salute that country of mine, whose forehead is purified/ sanctified by river Ganga and waist part by river Narmada.
काशी प्रयाग मथुरा वृन्दाटवीविशालाः ।
द्वारावतीसुकाञ्चीविदिशादितीर्थमालाः ।
संभूषयन्ति कामं यस्य प्रशान्तवेषम् ॥ १॥
जिस स्वदेश में इतिहास और परम्परा से जुडे हुए, पूर्ण रूपसे शान्तिप्रदर्शक, मोक्षदायक, अलङ्कारित और शृङ्गारिक वस्त्र जैसे भूषित काशी, प्रयाग, मथुरा, वृन्दावन, द्वारावती, सुकाञ्ची, एवं विदिशा जैसे पवित्र प्रदेश हैं, ऐसे स्वदेश को मैं वन्दन करता हूँ ।
I salute that country of mine, whose dress is adorned/ decorated by the Holy places like Kashi, Prayag, Mathura, Vrindavan, Dwaravati, Sukanchi, Vidisha.
सलिलं सुधामधुरितं पवनोऽपि गन्धवाही ।
चरितं विकल्पकलितं धर्मो दयावगाही ।
यत्प्राङ्गणं शबलितं कौतूहलैरशेषम् ॥ २॥
जिस स्वदेश का जल अमृतोपम मधुर प्रतीत होता है । जिसमें प्रवाहित होने वाला वायु सुगन्धि संवलित है जहाँ विभिन्न प्रकार की भाषा, वेशभूषा, स्वभाव एवं आचरण करने वाले नागरिक निवास करते हैं, किन्तु जहाँ सभी का धर्म एकनिष्ठ दयाभाव से परिपूर्ण है, तथा जिस स्वदेश का सम्पूर्ण भूभाग एक ऐसे प्राङ्गण (आँगन) के समान है जिस में अनेक धर्मों की विविधतायें विद्यमान है । (अर्थात जहाँ की संस्कृति गंगा जमुनी है) जिस देश की संस्कृति अनेकता में एकता की उक्ति को चरितार्थ करती है । मैं उस स्वदेश की सदैव वन्दना करता हूँ ।
I salute that country of mine, whose water tastes like nectar, breeze carries fragrance, where people are of different language, culture, nature yet follow their Dharma as compassion/ loving kindness. Whose land is like a compound/ country yard where there is unity in diversity.
गायन्ति यस्य देवाः शुभगीतकानि नित्यम् ।
सर्वे भवन्तु सुखिनो यस्यैत देवकृत्यम् ।
अभयप्रदोपदेशाः शमयन्ति पापलेशम् ॥ ३॥
जिस भारत वर्ष के गौरव गरिमा का गान देवता भी सदा करते आये हैं । सबके सुख की कामना, विश्वकल्याण की सद्भावना जिस देश का एक मात्र परम कर्तव्य है तथा जिनके चिन्तनशील ऋषियों और मनीषियों ने अपने उपदेश से भय से मुक्ति प्रदान की है, तथा पाप के अंशमात्र को नष्ट करने वाले श्रेष्ठ उपाय बताये हैं । ऐसे देश की मैं सदैव वन्दना करता हूँ ।
I salute that country of mine, whose glory is always being sung by Gods. Well-wishing for others is the only thing considered worth doing. Where there is no fear because of the teaching of sages and which also destroys sins.
अचलो नु देवताऽऽत्मा वसुधाऽपि रत्नगर्भा ।
कुलिशायते यदस्थि प्रचुरं वनी सुदर्भा ।
केचिन्नमन्ति गिरिजां केचिच्च शालुवेशम् ॥ ४॥
जिस देश में पर्वतराज हिमालय श्रेष्ठ पर्वत है, जो देवस्वरूप है । जहाँ की धरणी धनवैभव से युक्त, रत्नों को अपनी गर्भ में धारण करनेवाली है । जहाँ दधीचि की अस्थियों वज्र बन जाती है रथा जहाँ के वन, अरण्य भूमि पर्याप्त उपयोगी शाद्वल वनों हरित तृणों से आछन्न हैं, तथा जहाँ के निवासी जनों में से कुछ लोग शक्तिस्वरूपा माँ भगवती की उपासना करते हैं तथा कुछ भगवान शङ्कर के शरणागत होने वाले हैं, ऐसे स्वदेश की वन्दना करता है ।
I salute that country of mine, where Himalaya is the greatest mountain, land is filled with precious stones, bones becomes a weapon (Vajra from bones of sage Dadhichi) and forests are filled with green grass. Where some worship Goddess Parvati and some to Lord Shiva.
अद्यापि यस्य नीतिर्विस्मापयत्यनल्पम् ।
उद्घोष्य विश्वशान्तिं भावञ्च मित्रकल्पम् ।
वन्दे ध्वजं त्रिवर्णं वन्देऽगृहीतकेशम् ॥ ५॥
जिस अपने देश की नीति प्राचीनकाल से एवं आज भी विश्वशान्ति का नारा लगाती है तथा विश्वबन्धुत्व की सद्भावना का उद्घोष करती हुई विश्व को आश्चर्यचकित कर देती है । उस तिरंगे ध्वज को मैं वन्दना करता हूँ जिसके तीनों वर्ण क्रमशः केसरिया विश्वप्रेम श्वेतवर्ण विश्वशान्ति तथा हरितवर्ण गतिशील नीतियों का प्रवर्तक है, ऐसे देश की मैं वन्दना करता हूँ ।
I salute that country of mine, even today whose morality/ conduct/ prudence and the announcement of universal brotherhood astonishes many. I salute to the flag which comprises of three colors.
वन्दे सुलोकतन्त्रं वन्दे सशक्तदेशम् ।
वन्दे स्वतन्त्रदेशं वन्दे विशालदेशम् ॥ ६॥
जिस देशकी कार्यप्रवृत्ति, अर्थव्यवस्था, राजनीति सुयोग्य लोकतन्त्र से बन्धी है, हर एक नागरिक की जागृततासे माने देश सशक्त बन गया है, ऐसे स्वातन्त्र्य दिलाने वाले विशाल देश को मैं वन्दन करता हूँ ।
I salute that country of mine, which has good governance, who is capable, independent and great.
रचना- आचार्यः अभिराज राजेन्द्र मिश्रः
Encoded from audio and proofread by Manish Gavkar