शिष्टस्तोत्रम्

शिष्टस्तोत्रम्

भज विश्रान्तिं त्यज रे भ्रान्तिं निश्चिनु शैवं निज रूपम् । हेयादेयातीतं सच्चित्सुखरूपस्त्वं भव शिष्टः ॥ १॥ रे! विश्रान्ति - उपराम को भज, भ्रान्ति - भ्रम को त्याग, छोडने और पकडने से रहित सत् - सत्य, चित् -चैतन्य, सुख- आनन्द रूप अपने शिव रूप का निश्चय कर, शिष्ट-सभ्य हो । दृश्यमशेषं त्वत्तोऽभिन्नं मा भैषीः किलः भूमानम् । विद्ध्यात्मानं वेदनरूपं वेद शिरस्थं भव शिष्टः ॥ २॥ निश्चय सम्पूर्ण दृश्य - जगत् तुझसे अभिन्न है, (इसलिये) मत डर, उपनिषदों में स्थित, अनुभव स्वरूप भूमा को आत्मा जान, शिष्ट हो । तृणवत्त्यज धनवनितापुत्रान् लोकं शोकं भेद भवम् । इदमहमित्थं कलनां हित्वा पूर्णानन्दो भव शिष्टः ॥ ३॥ भेद से उत्पन्न हुए धन, स्त्री, पुत्र, लोक, शोक को तृण के समान त्याग दे । ``यह, मैं'' इस प्रकार की कलना-मैल को त्याग कर पूर्ण आनन्द स्वरूप शिष्ट हो । कृत्याकृत्ये त्यज रे दूरे विधिगोचरतां मार्गास्त्वम् । मानागोचररूपं ज्ञात्वा किं त्वं कर्ता भव शिष्टः ॥ ४॥ रे ! कृत्य-विधि कर्म, अकृत्य-निषेध कर्म और विधि को बताने वाले मार्गों को तू दूर से त्याग दे, प्रमाणों से न जानने योग्य रूप को जान कर क्या तू कर्ता है --नहीं है, शिष्ट हो । लोकविलक्षणचरितो भूया लोकातीतं, पदमिच्छन् । पावयः सकलाम्पृथिवीमेनामात्मारामो भव शिष्टः ॥ ५॥ लोक से अतीत-बाहर के पद की इच्छा करता हुआ लोक से विलक्षण मार्ग का चलने वाला हो, इस सब पृथिवी को पवित्र करता हुआ आत्माराम- आत्मा में रमण करने वाला शिष्ट हो । निन्दास्तोत्रे मानामानौ समदृष्टेस्ते किं कुरुताम् । कुरुतां लोकः कामं स्वेष्टं का ते हानिर्भव शिष्टः ॥ ६॥ निन्दा स्तुति और मान अपमान से तुझ समदर्शी को क्या करना है - कुछ नहीं, लोक अपनी इच्छानुसार कामना किया करें, तेरी क्या हानि है - कुछ नहीं, शिष्ट हो । शैवः शाक्तो गणपतिभक्तो वैष्णवसौराविति नाना अज्ञात्वायं जाता लोके स त्वं शम्भुर्भव शिष्टः ॥ ७॥ शैव-शिव उपासक, शाक्त-शक्ति के उपासक, गणपति के भक्त, वैष्णव-विष्णु उपासक, सौर-सूर्य उपासक अनेक जिसको न जान कर लोक में हुए हैं, वह शम्भु तू है, शिष्ट हो । जलबुद्बुद्वज्जगदिदमखिलं पश्यन्नात्मनि तिष्ठ त्वम् । को वा मोहः लोकः को वोऽद्वैतदृशस्तव भव शिष्टः ॥ ८॥ इस सम्पूर्ण जगत् को जल के बबूले के समान जान कर तू आत्मा में टिक, तुझ अद्वैत देखने वाले को शोक कहां और मोह कहां इसलिये शिष्ट हो । अजपामन्त्रं देशिकवचनील्लब्ध्वा देवं स्वात्मानम् । ज्ञात्वा सहजावस्थायां वस भावातीतो भव शिष्टः ॥ ९॥ देशिक-सद्गुरु के वचन से अजपा मन्त्र को प्राप्त कर अपने आत्मा को जान कर सहजा - तुरीयावस्था में वास कर, भाव से अतीत शिष्ट हो । शिष्टस्तोत्रं ब्रह्मिष्टानां तुष्टिकरं स्यादिति कलये । उक्तावस्था सर्वेषां स्याद् गुरुकृपया किल बुद्धिमताम् ॥ १०॥ ब्रह्म की इच्छा करने वालो को यह शिष्ट स्तोत्र कलियुग में सन्तुष्टि करने वाला हो और गुरु कृपा से सब बुद्धिमानों को उपरोक्त अवस्था की निश्चय प्राप्ति हो । इति शिष्टस्तोत्रं सम्पूर्णम् । Proofread by Aruna Narayanan narayanan.aruna at gmail.com
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% Category              : misc, vedanta
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% Language              : Sanskrit
% Subject               : philosophy/hinduism/religion
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% Latest update         : April 18, 2020
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