साधयति संस्कारभारति भारते नवजीवनम्
साधयति संस्कारभारति भारते नवजीवनम् ॥ ध्रु॥
प्रणवमूलं प्रगतिशीलं प्रखरराष्ट्रविवर्धकम् ।
शिवं-सत्यं-सुन्दरमभिनवं संस्करणोद्यमम् ॥ १॥
मधुर-मञ्जुल-रागभारित-हृदय-तन्त्री-मन्त्रितम् । (रागभरितं)
वादयति सङ्गीतकं वसुधैकभावनपोषकम् ॥ २॥
ललितरसमय-लास्यलीला चण्डताण्डवगमकहेला ।
कलित-जीवन-नाट्यवेदं कान्ति-क्रान्ति-कथा-प्रमोदम् ॥ ३॥
चतुषष्ठिकलान्वितं परमेष्ठिना परिवर्तितम् ।
विश्वचक्रभ्रमणरूपं शाश्वतं श्रुतिसम्मतम् ॥ ४॥
जीवयत्वभिलेखमखिलं सप्तवर्णसमीकृतम् ।
प्लावयति रससिन्धुना प्रतिहिन्दुमानसनन्दनम् ॥ ५॥
-- डाॅ के घनश्याम प्रसाद राव
अनुवाद-
ॐकार जिसके मूल में है, जो उन्नतिशील है, त्वरित गति से राष्ट्र
का निर्माण करने वाली है, सत्य, मंगलमय सुन्दर एवं संस्कारों को
प्रदान करने वाली संस्कार भारती नामक संस्था भारत में नवजीवन
प्रदान कर रही है ।
जो पृथ्वी की (समतल मानव जाति की) एकता को पुष्ट करने वाली है
तथा माधुर्यपूर्ण, सुन्दर हृदय के तारों से मिलकर राग-भर संगीत
बजती है ।
सुन्दर, रसयुक्त, लास्य (मधुर नृत्य) तथा उग्र ताण्डव नृत्य को
उत्पन्न करने वाला माधुर्य एवं ओज गुणसहित आनन्द भरी कथाओं से
युक्त नाट्य वेद जीवन को सुन्दर बनाता है ।
चौसठ कलाओं से समन्वित, ऋषि द्वारा परिवर्तित अथवा नवीनकृत
संसार रूपी चक्र पर भ्रमणशील शाश्वत एवं वेदों द्वारा समर्पित
है ।
समाहित सभी अभिलेखों में से सात वर्गों में समाहित होकर प्रत्येक
हिन्दु मानस के मन की आनन्द रस रूपी समुद्र के द्वारा आनन्द में निमज्जित
करता है ।