भारतीवसन्तगीतिः निनादय नवीनामये वाणि!

भारतीवसन्तगीतिः निनादय नवीनामये वाणि!

निनादय नवीनामये वाणि! वीणां मृदुंगाय गीतिं ललित-नीति-लीनाम् ॥ ध्रुवम् ॥ मधुर-मञ्जरी-पिञ्जरी-भूत-मालाः वसन्ते लसन्तीह सरसा रसालाः कलापाः ललित-कोकिला-काकलीनाम् ॥ १॥ वहति मन्दमन्दं सनीरे समीरे कलिन्दात्मजायास्सवानीरतीरे, नतां पङ्क्तिमालोक्य मधुमाधवीनाम् ॥ २॥ ललित-पल्लवे पादपे पुष्पपुञ्जे मलयमारुतोच्चुम्बिते मञ्जुकुञ्जे, स्वनन्तीन्ततिम्प्रेक्ष्य मलिनामलीनाम् ॥ ३॥ लतानां नितान्तं सुमं शान्तिशीलं चलेदुच्छलेत्कान्तसलिलं सलीलम्, तवाकर्ण्य वीणामदीनां नदीनाम् ॥ ४॥ ---- जानकीवल्लभशास्त्री प्रस्तुत गीत आधुनिक संस्कृत-साहित्य के प्रख्यात कवि पं. जानकी वल्लभ शास्त्री की रचना ``काकली'' नामक गीतसङ्ग्रह से सङ्कलित है । इसमें सरस्वती की वन्दना करते हुए कामना की गई है कि हे सरस्वती! ऐसी वीणा बजाओ, जिससे मधुर मञ्जरियों से पीत पङ्क्तिवाले आम के वृक्ष, कोयल का कूजन, वायु का धीरे-धीरे बहना, अमराइयों में काले भ्रमरों का गुञ्जार और नदियों का (लीला के साथ बहता हुआ) जल, वसन्त ऋतु में मोहक हो उठे । स्वाधीनता सङ्ग्राम की पृष्ठभूमि में लिखी गयी यह गीतिका एक नवीन चेतना का आवाहन करती है तथा ऐसे वीणास्वर की परिकल्पना करती है जो स्वाधीनता प्राप्ति के लिए जनसमुदाय को प्रेरित करे ।

शब्दः । शब्दार्थाः इन्दी । English

निनादय । नितरां वादय । गुञ्जित करो/बजाओ । Play (the musical instrument) मृदुं । चारु, मधुरं । कोमल । Melodious ललितनीतिलीनां । सुन्दरनीतिसंलग्नां । सुन्दर नीति में लीन । Merged in nice rules मञ्जरी । आम्रकुसुमं । आम्रपुष्प । Blossom of mango tree पिञ्जरीभूतमालाः । पीतपङ्क्तयः । पीले वर्ण से युक्त पङ्क्तियाँ । Yellow row लसन्ति । शोभन्ते । सुशोभित हो रही हैं । Looking magnificent इह । अत्र । यहाँ । Here सरसाः । रसपूर्णाः । मधुर । Juicy रसालाः । आम्राः । आम के पेड़ । Mango trees कलापाः । समूहाः । समूह । Groups काकली । कोकिलानां ध्वनिः । कोयल की आवाज । Sound of cuckoo birds सनीरे । सजले । जल से पूर्ण । Full of water समीरे । वायौ । हवा में । In the wind कलिन्दात्मजायाः । यमुनायाः । यमुना नदी के । Of the river Yamuna सवानीरतीरे । वेतसयुक्ते तटे । बेन्त की लता से युक्त तट पर । On the shore with bamboos नतां । नतिप्राप्तां । झुकी हुई । The bent मधुमाधवीनां । मधुमाधवीलतानां । मधुर मालती लताओं का । Of Malti creepers ललितपल्लवे । मनोहरपल्लवे । मन को आकर्षित करने वाले पत्ते । On an attractive leaf पुष्पपुञ्जे । पुष्पसमूहे । पुष्पों के समूह पर । On the bunch of flowers मलयमारुतोच्चुम्बिते । मलयानिलसंस्पृष्टे । चन्दन वृक्ष की सुगन्धित वायु से स्पर्श किये गये । Full of fragrance of sandal tree मञ्जुकुञ्जे । शोभनलताविताने । सुन्दर लताओं से आच्छादित स्थान । In the summer house स्वनन्तीं । ध्वनिं कुर्वन्तीं । ध्वनि करती हुई । Creating sound ततिं । पङ्क्तिं । समूह को । The row पेरक्ष्य । दृष्ट्वा । देखकर । Seeing मलिनां । कृष्णवर्णां । मलिन । The black अलीनां । भ्रमराणां । भ्रमरों के । Of drones सुमं । कुसुमं । पुष्प को । The flower शान्तिशीलं । शान्तियुक्तं । शान्ति से युक्त । Peaceful उच्छलेत् । ऊर्ध्वं गच्छेत् । उच्छलित हो उठे । Go up कान्तसलिलं । मनोहरजलं । स्वच्छ जल । Clear water सलीलं । क्रीडासहितं । खेल-खेल के साथ । In a playful manner आकर्ण्य । श्रुत्वा । सुबकर । Listening

अन्वय और हिन्दी भावार्थ

अये वाणि! नवीनां वीणां निनादय । ललितनीतिलीनां गीतिं मृदुं गाय । हे वाणी! नवीन वीणा को बजाओ, सुन्दर नीतियों से परिपूर्ण गीत का मधुर गान करो । इह वसन्ते मधुरमञ्जरीपिञ्जरीभूतमालाः सरसाः रसाला: लसन्ति । ललित- कोकिलाकाकलीनां कलापाः ( विलसन्ति) । अये वाणि! नवीनां वीणां निनादय । इस वसन्त में मधुर मञ्जरियों से पीली हो गयी सरस आम के वृक्षों की माला सुशोभित हो रही है । मनोहर काकली (बोली, कूक) वाली कोकिलों के समूह सुन्दर लग रहे हैं । हे वाणी! नवीन वीणा को बजाओ । कलिन्दात्मजायाः सवानीरतीरे सनीरे समीरे मन्दमन्दं वहति (सति) माधुमाधवीनां नतां पङ्क्तिम् अवलोक्य अये वाणि! नवीनां वीणां निनादय । यमुना के वेतस लताओं से घिरे तट पर जल बिन्दुओं से पूरित वायु के मन्द मन्द बहने पर फूलों से झुकी हुई मधुमाधवी लता को देखकर, हे वाणी ! नवीन वीणा को बजाओ । ललितपल्लवे पादपे पुष्पपुञ्जे मञ्जुकुञ्जे मलय-मारुतोच्चुम्बिते स्वनन्तीम् अलीनां मलिनां ततिं प्रेक्ष्य अये वाणि! नवीनां वीणां निनादय । मलयपवन से स्पृष्ट ललित पल्लवों वाले वृक्षों, पुष्पपुञ्जों तथा सुन्दर कुञ्जों पर काले भौंरों की गुञ्जार करती हुई पंक्ति को देखकर, हे वाणी नवीन वीणा को बजाओ । तव अदीनां वीणाम् आकर्ण्य लतानां नितान्तं शान्तिशीलं सुमं चलेत् नदीनां कान्तसलिलं सलीलम् उच्छलेत् । अये वाणि! नवीनां वीणां निनादय । तुम्हारी ओजस्विनी वीणा को सुनकर लताओं के नितान्त शान्त सुमन हिल उठें, नदियों का मनोहर जल क्रीडा करता हुआ उछल पडे । हे वाणी ! नवीन वीणा को बजाओ । प्रस्तुत गीत के समानान्तर गीत - वीणावादिनि वर दे । प्रिय स्वतन्त्र रव अमृत मन्त्र नव, भारत में भर दे । वीणावादिनि वर दे । हिन्दी के प्रसिद्ध कवि पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला के गीत की कुछ पंक्तियाँ यहाँ दी गई हैं, जिनमें सरस्वती से भारत के उत्कर्ष के लिये प्रार्थना की गई है । राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की रचना ``भारतवर्ष में गूँजे हमारी भारती'' भी ऐसे ही भावों से ओतप्रोत है ।

पं. जानकीवल्लभ शास्त्री परिचय

पं. जानकी वल्लभ शास्त्री हिन्दी के छायावादी युग के कवि के रूप में प्रसिद्ध हैं । ये संस्कृत के रचनाकार एवं उत्कृष्ट अध्येता रहे । बाल्यकाल में ही शास्त्री जी की काव्य रचना में प्रवृत्ति बन गई थी । अपनी किशोरावस्था में ही इन्हें संस्कृत कवि के रूप में मान्यता प्राप्त हो चुकी थी । उन्नीस वर्ष की उम्र में इनकी संस्कृत कविताओं का संग्रह ``काकली'' का प्रकाशन हुआ । शास्त्री जी ने संस्कृत साहित्य में आधुनिक विधा की रचनाओं का प्रारंभ किया । इनके द्वारा गीत, गजल, श्लोक, आदि विधाओं में लिखी गई संस्कृत कविताएँ बहुत लोकप्रिय हुईं । इनकी संस्कृत कविताओं में संगीतात्मकता और लय की विशेषता ने लोगों पर अप्रतिम प्रभाव डाला ।
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% Latest update         : July 21, 2023
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