विष्णुपादस्तुतिः
॥ श्रीः ॥
॥ श्रीदिग्विजयरामो विजयते ॥
यदीयमाश्रितं पदं समस्तपापनाशकम् ।
स विष्णुरात्मसत्पदे सुभक्तिमाशु मे दिशेत् ॥ १॥
यदीयमाश्रितं पदं समस्तविघ्ननाशकम् ।
स विष्णुरात्मसत्पदे सुभक्तिमाशु मे दिशेत् ॥ २॥
यदीयमाश्रितं पदं समस्तदुःखनाशकम् ।
स विष्णुरात्मसत्पदे सुभक्तिमाशु मे दिशेत् ॥ ३॥
यदीयमाश्रितं पदं समस्तपुण्यदायकम् ।
स विष्णुरात्मसत्पदे सुभक्तिमाशु मे दिशेत् ॥ ४॥
यदीयमाश्रितं पदं समस्तसौख्यदायकम् ।
स विष्णुरात्मसत्पदे सुभक्तिमाशु मे दिशेत् ॥ ५॥
यदीयमाश्रितं पदं समस्तभाग्यदायकम् ।
स विष्णुरात्मसत्पदे सुभक्तिमाशु मे दिशेत् ॥ ६॥
यदीयमाश्रितं पदं समस्तशास्त्रबोधनम् ।
स विष्णुरात्मसत्पदे सुभक्तिमाशु मे दिशेत् ॥ ७॥
यदीयमाश्रितं पदं समस्तकर्मसिद्धिदम् ।
स विष्णुरात्मसत्पदे सुभक्तिमाशु मे दिशेत् ॥ ८॥
यदीयमाश्रितं पदं समस्तदेवतोषदम् ।
स विष्णुरात्मसत्पदे सुभक्तिमाशु मे दिशेत् ॥ ९॥
यदीयमाश्रितं पदं समस्तसद्विमुक्तिदम् ।
स विष्णुरात्मसत्पदे सुभक्तिमाशु मे दिशेत् ॥ १०॥
यतिः सत्यात्मपदभाक् अभवद्विष्णुपादभाक् ।
तदुक्तपदभाग् यस्तु स भवेद्विष्णुपादभाक् ॥
॥ इति श्रीमदुत्तरादिमठाधीशैः श्रीमत्सत्यात्मतीर्थैः विरचिता विष्णुपादस्तुतिः ॥
Encoded and proofread by Chandrasekhar Karumuri