श्रीकृष्णस्तवः
कृष्णं सर्वेश्वरं वन्दे पूर्णं ब्रह्म सनातनम् ।
वृन्दावनेश्वरं ज्ञेयं सखिवृन्दैश्च सेवितम् ॥ १॥
सखिजनों के द्वारा परिसेवित पूर्णब्रह्म जो सनातन हैं ऐसे सर्वेश्वर वृन्दावनेश्वर श्रीकृष्ण भगवान् के स्वरूप को जानना चाहिए । ऐसे उन प्रभु की हम अभिवन्दना करते हैं ॥ १॥
कदम्ब-मञ्जु-कुञ्जेषु कालिन्दीतट-संस्थितम् ।
राधया सह गोविन्दं नमामि व्रजजीवनम् ॥ २॥
कदम्ब की सुन्दर कुञ्जों में एवं श्रीयमुनाजी के पावन तटीय प्रदेश में विराजमान व्रज के एकमात्र सुशोभित गोविन्द भगवान् श्रीकृष्ण को अभिनमन करते हैं ॥ २॥
केशेन्द्रादि सदाराध्यं श्रुति कदम्बसंस्तुतम् ।
ऋषि-मुनीश्वराद्यैश्च समाराध्यं भजे हरिम् ॥ ३॥
ब्रह्मा-शङ्कर-इन्द्रादि देवों द्वारा निरन्तर आराधित एवं
श्रुति मन्त्रों द्वारा जिनकी स्तुति की जाती है एवं ऋषि-मुनिजनों द्वारा जिनकी उपासना भी की जाती है, ऐसे हरि स्वरूप श्रीकृष्ण भगवान् का स्मरण भजन करते हैं ॥ ३॥
व्रजालि मानसे नित्यं शोभितं श्यामसुन्दरम् ।
माधुर्य-करुणापूर्ण स्मरामि सततं हृदा ॥ ४॥
व्रज गोपीजनों द्वारा अपने अन्तर्मानस में सदा सर्वदा सुशोभित एवं मधुरता करुणा के सागर श्यामसुन्दर भगवान् श्रीकृष्ण का अपने हृदय से अनवरत स्मरण करते हैं ॥ ४॥
सौरि-सकाश-कुञ्जेषु व्रजन्तं राधया सह ।
कोकिला-सारिका-नादै हर्षितं माधवं भजे ॥ ५॥
यमुना के समीप कुञ्जों में सर्वेश्वरी प्रिया श्रीराधा के साथ पधारते हुए तथा कोयल-मैना के सुन्दर स्वर के श्रवण से अति हर्षित माधवरूप श्रीकृष्ण भगवान् का भजन करते हैं ॥ ५॥
गोवृन्दपृष्ठभागे च गच्छन्तं कृष्णमीश्वरम् ।
गोपवृन्दैः सदा सार्द्धं स्मरन्तं राधिकां भजे ॥ ६॥
गोमाताओं के पीछे-पीछे अपने गोपगणों के साथ सर्वेश्वरी श्रीराधिकाजी का स्मरण करते हुए परमेश्वर श्रीकृष्ण भगवान् का भजन करते हैं ॥ ६॥
सतां सङ्गीतशास्त्रैश्च प्रगीतं माधवं भजे ।
अतीवकरुणापूर्ण विद्वद्भिः समुपासितम् ॥ ७॥
विविध विद्वानों के द्वारा उपासित किये गये परम करुणा सागर तथा सन्तों के सङ्गीत शास्त्र से प्रगीयमान माधव स्वरूप श्रीकृष्ण भगवान् का भजन करते हैं ॥ ७॥
क्वणन्तं मुरलीवाद्यमतीवमधुरं प्रियम् ।
भजेऽहं नित्यशः स्वान्ते श्रीकृष्णं राधया सह ॥ ८॥
अत्यन्त मधुर एवं प्रिय मुरली वाद्य को बजाते हुए नित्य नवकिशोरी रासेश्वरी श्रीराधिकाजी के सङ्ग सुशोभित श्रीकृष्ण भगवान् को अपने अन्तःकरण से प्रतिपल हम भजन करते हैं ॥ ८॥
कृष्णस्तवः सुधापूर्णः पराभक्तिप्रदायकः ।
राधासर्वेश्वराद्येन शरणान्तेन निर्मितः ॥
श्रीकृष्ण भगवान् की पराभक्ति को प्रदान करने वाला अमृतरूप श्रीकृष्णस्तव सर्वेश्वर श्रीकृष्ण भगवान् की कृपा से प्रस्तुत है ॥ ९॥
इति श्रीकृष्णस्तवः सम्पूर्णः ।
Proofread by Mohan Chettoor