श्रीविष्णुतीर्थविरचितं श्रीकृष्णाष्टकम्
श्री वासुदेव मधुसूदन कैटभारे
लक्षीश पक्षिवर वाहन वामनेति ।
श्रीकृष्ण मन्मरण उपागते तु
त्वन्नाम मद्वचन गोचरतामुपैतु ॥ १॥
गोविन्द गोकुलपते नवनीत चोर
श्री नन्दनन्दन मुकुन्द दयापरेति ।
श्रीकृष्ण मन्मरण उपागते तु
त्वन्नाम मद्वचन गोचरतामुपैतु ॥ २॥
नाराणाखिल गुणार्णव वेद
पारायण प्रिय गजाधिप मोचकेति ।
श्रीकृष्ण मन्मरण उपागते तु
त्वन्नाम मद्वचन गोचरतामुपैतु ॥ ३॥
आनन्द सच्चिदाखिलात्मक भक्त वर्ग
स्वानन्द दान चतुरागम सन्नुतेति ।
श्रीकृष्ण मन्मरण उपागते तु
त्वन्नाम मद्वचन गोचरतामुपैतु ॥ ४॥
श्री प्राणतोऽधिक सुख्यातक रूप देव
प्रोद्यद्दिवाकर निभाच्युत सद्गुणेति ।
श्रीकृष्ण मन्मरण उपागते तु
त्वन्नाम मद्वचन गोचरतामुपैतु ॥ ५॥
विश्वान्धकारि मुख दैवत वन्द्य शाश्वत्
विश्वोद्भवस्थितिमृति प्रभृति प्रदेति ।
श्रीकृष्ण मन्मरण उपागते तु
त्वन्नाम मद्वचन गोचरतामुपैतु ॥ ६॥
नित्तैक रूप दश रूप सहस्र लक्षा
नन्त रूप शत रूप विरूपकेति ।
श्रीकृष्ण मन्मरण उपागते तु
त्वन्नाम मद्वचन गोचरतामुपैतु ॥ ७॥
सर्वेश सर्वगत सर्व शुभानुरूप
सर्वान्तरात्मक सदोदित सत्प्रियेति ।
श्रीकृष्ण मन्मरण उपागते तु
त्वन्नाम मद्वचन गोचरतामुपैतु ॥ ८॥
इति श्रीविष्णुतीर्थविरचितं श्रीकृष्णाष्टकं सम्पूर्णम् ।