श्रीहयग्रीवाष्टकम्
प्रणवसूद्रीत विग्रह प्रणुत सङ्घात सुग्रह
विहत दुर्वादि दुर्ग्रह विमतसन्धात निग्रह ।
विधृत सुज्ञान मुद्रण विनिहताज्ञान मुद्रण
जय जय श्री हयानन जय जय श्री हयानन ॥ १॥
सकल सिद्धान्त चोदन सुकर वेदान्त बोधन
निखिल दुष्कर्म बन्धन निगम सद्धर्म साधन ।
वितर दाम्नाय वेदन विलसदोङ्कार नादन
जय जय श्री हयानन जय जय श्री हयानन ॥ २॥
प्रणव हेषा विनोदन प्रणत दोषापनोदन
सुकृत भाषाभिवादन ललित भूषा सुवादन ।
नवमनीषाब्धिधारण भवभयोद्विद्धिः वारण
जय जय श्री हयानन जय जय श्री हयानन ॥ ३॥
कमलधामनि पयोनिधे विमल धामनि कलानिधे
विमल दीप्ते सुवाङ्मय विधृत शक्ते जगन्मय ।
वितत सद्भानु मण्डित श्रितकलादान पण्डित
जय जय श्री हयानन जय जय श्री हयानन ॥ ४॥
सुजनरक्षा विधायक स्वजन वीक्षा प्रदायक
श्रितजन त्राण दीक्षित श्रुति शिखा जाल दीक्षित ।
स्थिर चतुर्वेद पञ्जर स्वर महामोद पञ्चर
जय जय श्री हयानन जय जय श्री हयानन ॥ ५॥
करविराजत् सुदर्शन कलुषराशीविकर्शन
सुकृत दत्त स्वदर्शन श्रुति महावाग् विमर्शन ।
विलसदम्भोज वासन विदलिताज्ञानवासन ।
जय जय श्री हयानन जय जय श्री हयानन ॥ ६॥
सकल वाणीश नायक सकल मेधा प्रदायक
हसित ताम्र प्रतिष्ठित सुदृढबीजाभिवेष्टित ।
हृदय सारस्वरूपक हृत सुरारि प्रदायक
जय जय श्री हयानन जय जय श्री हयानन ॥ ७॥
स्फुरित शुद्ध प्रभायत स्फुरित विश्व त्रयीमय
विशदवाणी विराजित विबुध लोकैक पूजित ।
निबिड तेजो विनिश्रुत निजकराञ्चत् सपुस्तक
जय जय श्री हयानन जय जय श्री हयानन ॥ ८॥
इति श्रीहयग्रीवाष्टकं सम्पूर्णम् ।
Proofread by Mohan Chettoor