श्री हनुमत्स्तोत्रम्
(प्रमाणिका वृत्तम्)
सुखैकधाम भूषणम् मनोजगर्वखण्डनम् ।
अनात्मधीविगर्हणम् भजेषमञ्जनीसुतम् ॥ १॥
भवाम्बुधिं तितीर्षुभिः सुसेव्यमानमद्भुतम् ।
शिवावतारिणं परम् भजेऽहमञ्जनीसुतम् ॥ २॥
गुणाकरं कृपाकरम् सुशान्तिदं यशस्करम् ।
निजात्मबुद्धिदायकम् भजेऽहमञ्जनीसुतम् ॥ ३॥
सदैव दुष्टभञ्जनम् सदा सुधर्मवर्धनम् ।
मुमुक्षुभक्तरञ्जनम् भजेऽहमञ्जनीसुतम् ॥ ४॥
सुरामपादसेविनम् सुरामनामगायिनम् ।
सुरामभक्तिदायिनम् भजेऽहमञ्जनीसुतम् ॥ ५॥
विरक्तमण्डलाधिपम् सदात्मवित्सुसेवितम् ।
सुभक्तवृन्दवन्दितम् भजेऽहमञ्जनीसुतम् ॥ ६॥
विमुक्ति विघ्ननाशकम् विमुक्ति भक्तिदायकम् ।
महाविरक्तिकारकम् भजेऽहमञ्जनीसुतम् ॥ ७॥
सुखंयदेवमद्वयम् बृहत्त्वमेव तत् स्वयम् ।
इतीह बोधिकं गुरुम् भजेऽहमञ्जनीसुतम् ॥ ८॥
विरक्तिमुक्तिदायकम् इमं स्तवं सुपावनम् ।
पठन्ति ये समादरात न संसरति ते ध्रुवम् ॥ ९॥
॥ इति श्रीमत् परमहंसपरिव्राजकाचार्य सद्गुरु भगवता
श्रीधरस्वामिना विरचितं श्रीसमर्थरामदास स्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥