श्रीनर्मदाष्टकम्
देवासुरा सुपावनी नमामि सिद्धिदायिनी
त्रिपूरदैत्यभेदिनी विशाल तीर्थमेदिनी ।
शिवासनी शिवाकला किलोललोल चापला
तरङ्ग रङ्ग सर्वदा नमामि देवि नर्मदा ॥ १॥
विशाल पद्मलोचनी समस्त दोष मोचिनी
गजेन्द्रचाल-गामिनी विदीप्त तेजदामिनी ।
कृपाकरी सुखाकरी अपार पारसुन्दरी
तरङ्गरङ्ग सर्वदा नमामि देवि नर्मदा ॥ २॥
तपोनिधी तपस्विनी स्वयोग युक्तमाचरी
तपः कला तपोबला तपस्विनी शुभामला ।
सुरासनी सुखासनी कुताप पापमोचिनी
तरङ्गरङ्ग सर्वदा नमामि देवि नर्मदा ॥ ३॥
कलौ मलापहारिणी नमामि ब्रह्मचारिणी
सुरेन्द्र शेषजीवनी अनादि सिद्धिधारिणी ।
सुहासिनी असङ्गिनी जरायु-मृत्युभञ्जिनी
तरङ्गरण सर्वदा नमामि देवि नर्मदा ॥ ४॥
मुनीन्द्र-वृन्द-सेवितं स्वरूपवह्नि सन्निभं
न तेज दाहकारकं समस्त ताप-हारकम् ।
अनन्त-पुण्य-पावनी सदैव शम्भु भावनी
तरङ्गरङ्ग सर्वदा नमामि देवि नर्मदा ॥ ५॥
षडङ्गयोग खेचरी विभूति चन्द्रशेखरी
निजात्म-बोध-रूपिणी फणीन्द्र-हारभूषिणी ।
जटा-किरीटमण्डनी समस्त पाप-खण्डनी
तरङ्गरङ्ग सर्वदा नमामि देवि नर्मदा ॥ ६॥
भवाब्धि कर्णधारके ! भजामि मातु तारके
सुखड्गभेद छेदके दिगन्तरालभेदके ।
कनिष्ठबुद्धिछेदिनी विशाल-बुद्धिवर्धिनी
तरङ्गरङ्ग सर्वदा नमामि देवि नर्मदा ॥ ७॥
समष्टि अण्ड खण्डनी पताल सप्तभेदिनी
चतुर्दिशा सुवासिनी पवित्र पूण्यदायिनी ।
धरा-मरा-स्वधारिणी समस्त लोकतारिणी
तरङ्गरङ्ग सर्वदा नमामि देवि नर्मदा ॥ ८॥
इति श्रीनर्मदाष्टकं सम्पूर्णम् ।