गङ्गास्तुतिः
मुनिरुवाच -
मातस्त्वं परमासि शक्तिरतुला सर्वाश्रया पावनी
लोकानां सुखमोक्षदाऽखिलजगत्संवन्द्यपादाम्बुजा ।
न त्वां वेद विधिर्न वा स्मररिपुर्नो वा हरिर्नापरे
सञ्जानन्ति शिवे महेशशिरसा मान्ये कथं वेद्मयहम् ॥ १॥
किं तेऽहं प्रवदामि रूपचरितं यच्चेतसो दुर्गमं
पारावारविवर्जितं सुरधुनी ब्रह्मादिभिः पूजिता ।
स्वेच्छाचारिणि संवितत्य करुणां स्वीयैर्गुणैर्मां शिवे
पुण्यं त्वं तु कृतागसं शरणगं गङ्गे क्षमस्वाम्बिके ॥ २॥
धन्यं मे भुवि जन्म कर्म च तथा धन्यं तपो दुष्करं
धन्यं मे नयनं यतस्त्रिनयनाराध्या दृशाऽऽलोकये ।
धन्यं मत्करयुग्मकं तव जलं स्पृष्टं यतस्तेन वै
धन्यं मत्तनुरप्यहो तव जलं तस्मिन्यतः सङ्गतम् ॥ ३॥
नमस्ते पापसंहर्त्रि हरमौलिविराजिते ।
नमस्ते सर्वलोकानां हिताय धरणीगते ॥ ४॥
स्वर्गापवर्गदे देवि गङ्गे पतितपावनि ।
त्वामहं शरणं यातः प्रसन्ना मां समुद्धर ॥ ५॥
इति श्रीमहाभागवते महापुराणे जह्नुमुनिकृता गङ्गास्तुतिः सम्पूर्णा ।
हिन्दी भावार्थ -
जह्नुमुनि बोले-- माता! आप सर्वश्रेष्ठ, अतुलनीया पराशक्ति,
सर्वाश्रयदात्री, लोगों को पवित्र करनेवाली, आनन्द और मोक्षको
प्रदान करनेवाली तथा सम्पूर्ण जगत्द्वारा वन्दित चरणकमलवाली हैं ।
आपको ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश (तत्त्वतः) नहीं जानते तथा अन्य
लोग भी नहीं जानते । भगवान् शिव के मस्तक से सम्मानित शिवे!
फिर मैं आपको कैसे जान सकता हूँ ॥ १॥
मैं आपके अचिन्त्य और अपार रूप तथा चरित्रका क्या वर्णन
करूँ? ब्रह्मादि देवताओं के द्वारा पूजित आप सुरनदी के रूप में प्रतिष्ठित
हैं । स्वतन्त्ररूपसे विचरण करनेवाली शिवे ! मातः ! आप अपने शुभ
गुणों से पुण्य तथा करुणा का विस्तार करके मुझ कृतापराध और
शरणागतको क्षमा कीजिये ॥ २॥
मेरा इस पृथ्वीपर जन्म और कर्म दोनों धन्य हुए, मेरी कठिन
तपस्या धन्य हुई तथा मेरे ये दोनों नेत्र भी धन्य हुए; जो त्रिलोचन
भगवान् शंकरकी आराध्या आपका मैं अपने नेत्रों से दर्शन कर रहा
हूँ । आप के जल के स्पर्श से ये मेरे दोनों हाथ धन्य हो गये और यह
मेरा शरीर भी धन्य हुआ, जिसमें आपका पावन जल गया है ॥ ३॥
पापों का संहार करनेवाली, भगवान् शङ्कर के मस्तकपर विराजमान
तथा सभी प्राणियों के हित के लिये पृथ्वीपर अवतीर्ण आपको नमस्कार है,
नमस्कार है । देवी गंगे! आप स्वर्ग और मोक्ष देनेवाली हैं, पतितों को
पवित्र करनेवाली हैं, मैं आपकी शरण में हूँ, आप मुझपर प्रसन्न होकर मेरा
उद्धार कीजिये ॥ ४-५॥
इस प्रकार श्रीमहाभागवत महापुराण के अन्तर्गत जह्नुमुनिद्वारा
की गयी गङ्गा- स्तुति सम्पूर्ण हुई ।
Proofread by Aruna Narayanan, PSA Easwaran