श्रीभुवनेश्वरी प्रातःस्मरणम्
उद्यदिन-द्यु तिमिन्दु-किरीटां, तुङ्ग-कुचां नयन-त्रय-युक्ताम् ।
स्मेरामभय-वराङ्कुश-पाशां, प्रातः स्मरामि श्रीभुवनेश्वरीम् ॥ १॥
प्रातः-कालीन सूर्य की कान्ति के समान आभावाली, मुकुट पर चन्द्रमावाली,
हँस-मुखी, अभय-वर-अङ्कुश-पाश-धारिणी, श्री भुवनेश्वरी
को मैं प्रातःकाल स्मरण करता हूँ ॥ १॥
सिन्दूरारुण-विग्रहा त्रि-नयनां माणिक्य-मौलि-स्फुरत्
तारा-नायक-शेखरां स्मित-मुखीमापीन-वक्षो-रुहाम् ।
पाणिभ्यामलि-पूर्ण-रत्न-चषकं संविभ्रतीं शाश्वतीम्,
प्रातः स्मरामि रत्न-घटस्थ-मध्य-चरणां पराम्बिकाम् ॥ २॥
सिन्दूर के समान लाल शरीरवाली, त्रिनेत्रा, माणिक्यों से चमकते
मुकुटवाली, चन्द्र-चूडा, हँसमुखी आपीन-वक्षोरुहा, दोनो हाथों
में सुरा-पूर्ण रत्न-जटित पात्र-धारिणी, रत्न-जटित घण्टो के मध्य
में चरण रखनेवाली पराम्बिका को मैं प्रातःकाल स्मरण करता हूँ ॥ २॥
श्यामाङ्गीं शशि-शेखरां निज-करैर्नीतं च रक्तोत्पलम्,
रत्नाढ्य-चषकं गुणं भय-हरं संविभ्रतीं शाश्वतीम् ।
भुक्ता-हार-लसत्-पयोधर-नतां नेत्र-त्रयोल्लासिनीम्,
प्रातः स्मरामि भुवनां सुर-पूजितां रक्ताम्बुज-स्थिताम् ॥ ३॥
श्यामाङ्गी, चन्द्र-शेखरा, हाथों में रक्त-कमल-रत्न-जटित
पान-पात्र, पाश और अभय-धारिणी, मोतियों के हार से
सुशोभित-पयोधरों से विनम्रा, तीन नेत्रों से उल्लास-पूर्णा,
रक्त-कमल पर विराजिता श्री भुवना देवी को मैं प्रातःकाल स्मरण
करता हूँ ॥ ३॥
उद्यच्चन्द्र-सहस्र-रश्मि-सदृशीं वह्नीन्दु-सूर्येक्षणाम्,
माध्वी-विन्दु-विघूर्णितेक्षण-युगां वीणा-रवत्याकुलाम् ।
माला-पुस्तक-सिन्धु-पात्र-कमलं दोर्भिर्वहन्तीं मुदा,
प्रातः स्मरामि भुवनेश्वरीं सर्वादि-देवैः सदा स्तुताम् ॥ ४॥
उदीयमान, चन्द्रमा की सहस्र किरणों की जैसी आभावाली,
अग्नि-चन्द्र-सूर्य-रूपी तीन नेत्र-धारिणी माध्वीक-मद्य के
विन्दु-ग्रहण से चञ्चल नेत्रोंवाली, वीणा-वादन-तत्परा,
माला-पुस्तक-पान-पात्र और कमल-हस्ता सभी देवों द्वारा सदैव
संस्तुता भुवनेश्वरी को मैं प्रातःकाल स्मरण करता हूँ ॥ ४॥
सरोज-नयनां चलत्-कनक-कुण्डलां शैशवीं,
धनुर्जप-वटी-करामुदित-सूर्य-कोटि-प्रभाम् ।
शशाङ्क-कृत-शेखरां शव-शरीर-संस्थां शिवाम्,
प्रातः स्मरामि भुवनेश्वरीं शत्रु-गति-स्तम्भिनीम् ॥ ५॥
कमल-नयना, चञ्चलस्वर्णकुण्डल-धारिणी,
धनुष-जप-माला-हस्ता, उदीयमान सूर्य जैसी कान्तिवाली,
चन्द्र-शेखरा, शवासीना, शत्रु-गति को स्तम्भित करनेवाली शिवा
भुवनेश्वरी को मैं प्रातःकाल स्मरण करता हूँ ॥ ५॥
वीणा-वादन-तत्परां त्रि-नयनां त्रैलोक्य-रक्षा-पराम्,
माध्वी-पान-परायणां शव-गतां मन्द-स्मितां चिन्मयीम् ।
माया-वीजविभूषितां शशि-कला चूडां च सत्कुण्डलाम्,
प्रातः स्मरामि भुवनेश्वरीं भगवतीं सर्वः संस्तुताम् ॥ ६॥
वीणा बजाती हुई, त्रिनेत्रा, तीनों लोकों की रक्षा में तत्परा,
माध्वीक-पान-परायणा, शवासीना, मन्द-मन्द मुस्कुरानेवाली,
चिन्मयो, मायावीज-विभूषिता, चन्द्रकला से युक्त चूडावाली,
सुन्दर-कुण्डल-धारिणी, सभी प्राणियों द्वारा प्रार्थिता भगवती
भुवनेश्वरी को मैं प्रातःकाल स्मरण करता हूँ ॥ ६॥
इति श्रीभुवनेश्वरीप्रातःस्मरणं सम्पूर्णम् ।
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