श्रीराघवेन्द्रगाथास्तुतिः
अज्ञाननाशाय विज्ञानपूर्णाय सुज्ञानदात्रे नमस्ते गुरो ।
श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य पाहि प्रभो ॥ १॥
आनन्दरूपाय नन्दात्मजाश्रीपदाम्भोजभाजे नमस्ते गुरो ।
श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य पाहि प्रभो ॥ २॥
इष्टप्रदानेन कष्टप्रहाणेन शिष्टस्तुत श्रीपदाम्भोज भो ।
श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य पाहि प्रभो ॥ ३॥
ईडे भवत्पादपाथोजमाध्याय भूयोऽपि भूयो भयात् पाहि भो ।
श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य पाहि प्रभो ॥ ४॥
उग्रं पिशाचादिकं द्रावयित्वाऽऽशु सौख्यं जनानां करोषीश भो ।
श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य पाहि प्रभो ॥ ५॥
ऊर्जत्कृपापूर पाथोनिधे मङ्क्षु तुष्टोऽनुगृह्णासि भक्तान् विभो ।
श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य पाहि प्रभो ॥ ६॥
ऋजूत्तम प्राणपादार्जनप्राप्तमाहात्म्य सम्पूर्णसिद्धेश भो ।
श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य पाहि प्रभो ॥ ७॥
ऋजुस्वभावाप्तभक्तेष्टकल्पद्रुरूपेशभूपादिवन्द्य प्रभो ।
श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य पाहि प्रभो ॥ ८॥
ऋद्धं यशस्ते विभाति प्रकृष्टं प्रपन्नार्तिहन्तर्महोदार भो ।
श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य पाहि प्रभो ॥ ९॥
क्लृप्तातिभक्तौघकाम्यार्थदातर्भवाम्भोधिपारङ्गत प्राज्ञ भो ।
श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य पाहि प्रभो ॥ १०॥
एकान्तभक्ताय माकान्तपादाब्ज उच्चाय लोके नमस्ते विभो ।
श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य पाहि प्रभो ॥ ११॥
ऐश्वर्यभूमन् महाभाग्यदायिन् परेषां च कृत्यादि नाशिन् प्रभो ।
श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य पाहि प्रभो ॥ १२॥
ओङ्कारवाच्यार्थभावेन भावेन लब्धोदयश्रीश योगीश भो ।
श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य पाहि प्रभो ॥ १३॥
और्वानलप्रख्य दुर्वादि दावनलैः सर्वतन्त्रस्वतन्त्रेश भो ।
श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य पाहि प्रभो ॥ १४॥
अम्भोज सम्भूत मुख्यामराराध्य भूनाथभक्तेश भावज्ञ भो ।
श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य पाहि प्रभो ॥ १५॥
अस्तङ्गतानेक मायदिवादीश विद्योतिताशेषवेदान्त भो ।
श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य पाहि प्रभो ॥ १६॥
काम्यार्थदानाय बद्धादराशेषलोकाय सेवानुसक्ताय भो ।
श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य पाहि प्रभो ॥ १७॥
खद्योतसारेषु प्रत्यर्थिसार्थेषु मध्याह्नमार्ताण्डबिम्बाभ भो ।
श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य पाहि प्रभो ॥ १८॥
गर्विष्ठ गर्वाम्बुशोषार्यमात्युग्र नम्राम्बुधेर्यामिनीनाथ भो ।
श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य पाहि प्रभो ॥ १९॥
घोरामयध्वान्तविध्वंसनोद्धाम देदीप्यमानार्कबिम्बाभ भो ।
श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य पाहि प्रभो ॥ २०॥
ङणत्कार दण्डाङ्क काषायवस्त्राङ्कक कौपीन पीनाङ्क हंसाङ्क भो ।
श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य पाहि प्रभो ॥ २१॥
चण्डीश काण्डेश पाखण्डवाक्काण्डतामिस्रमार्ताण्डपाषण्ड भो ।
श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य पाहि प्रभो ॥ २२॥
छद्माणुभागं न विद्मस्त्वदन्तः सुसद्मैव मद्माधवस्यासि भो ।
श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य पाहि प्रभो ॥ २३॥
जाड्यं हिनस्ति ज्वरार्शःक्षयाद्याशु ते पादपद्माम्बुलेशोऽपि भो ।
श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य पाहि प्रभो ॥ २४॥
झषध्वजीयेष्वलभ्योरुचेतः समारूढमारूढवक्षोऽङ्ग भो ।
श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य पाहि प्रभो ॥ २५॥
याज्ञाविहीनाय यादृच्छिकप्राप्ततुष्टाय सद्यः प्रपन्नोऽसि भो ।
श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य पाहि प्रभो ॥ २६॥
टीकारहस्यार्थविख्यापनग्रन्धविस्तारलोकोपकर्तः प्रभो ।
श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य पाहि प्रभो ॥ २७॥
ठङ्कुर्वरीणाममेयप्रभावोद्धरापारसंसारतो मां प्रभो ।
श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य पाहि प्रभो ॥ २८॥
डाकिन्यपस्मारघोरादिकोग्रग्रहोच्चाटनोदग्रवीराग्र्य भो ।
श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य पाहि प्रभो ॥ २९॥
ढक्कादिकध्वानविद्राविनानेकदुर्वादिगोमायुसङ्घात भो ।
श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य पाहि प्रभो ॥ ३०॥
णात्मादिमात्रर्णलक्ष्यार्थकश्रीपतिध्यानसन्नद्धधीसिद्ध भो ।
श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य पाहि प्रभो ॥ ३१॥
तापत्रयप्रौढबाधाभिभूतस्य भक्तस्य तापत्रयं हंसि भो ।
श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य पाहि प्रभो ॥ ३२॥
स्थानत्रयप्रापकज्ञानदातः स्त्रिधामाङ्घ्रिभक्तिं प्रयच्छ प्रभो ।
श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य पाहि प्रभो ॥ ३३॥
दारिद्र्य दारिद्र्ययोगेन योगेन सम्पन्नसम्पत्तिमाधेहि भो ।
श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य पाहि प्रभो ॥ ३४॥
धावन्ति ते नामधेयाभिसङ्कीर्तनेनैनसामाशु वृन्दानि भो ।
श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य पाहि प्रभो ॥ ३५॥
नानाविधानेकजन्मादिदुःखौघतः साध्वसं संहरोदार भो ।
श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य पाहि प्रभो ॥ ३६॥
पाता त्वमेवेति माता त्वमेवेति मित्रं त्वमेवेत्यहं वेद्मि भो ।
श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य पाहि प्रभो ॥ ३७॥
भालस्थदुर्दैववर्णावलीकार्यलोपोऽपि भक्तस्य शक्तोऽसि भो ।
श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य पाहि प्रभो ॥ ३८॥
बद्धोऽस्मि संसारपाशेन तेऽङ्घ्रिं विनाऽन्यागतिर्नेत्यवेमि प्रभो ।
श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य पाहि प्रभो ॥ ३९॥
भावं भजामीह वाचा वदामि त्वदीयं पदं दण्डवत् स्वामि भो ।
श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य पाहि प्रभो ॥ ४०॥
मान्येषु मान्योऽसि मत्या च धृत्या च मामद्य मान्यं कुरु द्राग् विभो
श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य पाहि प्रभो ॥ ४१॥
यं काममाकामये तं न चापं ततस्त्वं शरण्यो भवत्येमि भो ।
श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य पाहि प्रभो ॥ ४२॥
राजादिवश्यादि कुक्षिम्भरानेकचातुर्यविद्यासु मूढोऽस्मि भो ।
श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य पाहि प्रभो ॥ ४३॥
लक्षेषु ते भक्तवर्गेषु कुर्वेक लक्ष्यं कृपापाङ्गलेशस्य माम् ।
श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य पाहि प्रभो ॥ ४४॥
वाराङ्गनाद्यूतचौर्यान्यदारातुरत्वाद्यवद्यत्वतो मां प्रभो ।
श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य पाहि प्रभो ॥ ४५॥
शक्तो न शक्तिं तव स्तोतुमाध्यातुमीदृक्त्वहं करोमीश किं भो ।
श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य पाहि प्रभो ॥ ४६॥
षड्वैरिवर्गं ममारान्निराकुर्वमन्दो हरेराङ्घ्रिरागोऽस्तु भो ।
श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य पाहि प्रभो ॥ ४७॥
सन्मार्गसच्छास्त्रसत्सङ्गसद्भक्तिसज्ज्ञानसम्पत्तिमाधेहि भो ।
श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य पाहि प्रभो ॥ ४८॥
हास्यास्पदोऽहं समानेष्वकीर्त्या तवाङ्घ्रिं प्रपन्नोऽस्मि संरक्ष भो ।
श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य पाहि प्रभो ॥ ४९॥
लक्ष्मीविहीनत्वहेतोः स्वकीयैः सुदूरीकृतोऽस्म्यद्य वाच्योऽस्मि भो ।
श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य पाहि प्रभो ॥ ५०॥
क्षेमङ्करस्त्वं भवाम्भोदिमज्जज्जनानामिति त्वां प्रपन्नोऽस्मि भो ।
श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य पाहि प्रभो ॥ ५१॥
कृष्णावधूतेन गीतेन मात्रक्षराद्येन गाथास्तवेनेड्य भो ।
श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य पाहि प्रभो ॥ ५२॥
इति श्रीमत्कृष्णावधूतपण्डितकृतौ श्रीराघवेन्द्रतन्त्रे एकादशपटले
गाथास्तुतिः समाप्ता ।
राघवेन्द्र अक्षरमालिकास्तोत्रम्
Proofread by Gopalakrishnan, PSA Easwaran