श्रीनिम्बार्कवन्दनाष्टकम्
श्रुत्यर्थसाराम्बुधि-दिव्यपोतं
श्रीब्रह्मसूत्रार्थविकासभासम् ।
गीतार्थवाक्यार्थसुवृष्टिकारं
निम्बार्कमादित्यकरं भजेऽहम् ॥ १॥
उपनिषत्-मन्त्र समूह के सार-सिन्धु में अवगाहन के लिये दिव्य पोत अर्थात् जहाज रूप (आधार रूप) ब्रह्मसूत्र पर जिन्होन्ने वेदान्त पारिजात सौरभं नामक वृत्त्यात्मक सुप्रसिद्ध भाष्य की रचना करने की अनुकम्पा की है और इसी प्रकार श्रीमद्भगवद्गीता पर भी गीतावाक्यार्थ भाष्य का प्रणयन किया (जो दुर्भाग्य से अप्राप्य है) ऐसे आद्याचार्यवर्य श्रीनिम्बार्क भगवान् सूर्यवत् प्रभायुक्त उनका सर्वात्मना भजन करते हैं ॥ १॥
चक्रावतारं मधुसूदनस्य
निम्बार्करूपं भुवि सुप्रसिद्धम् ।
आचार्यवर्यं व्रजधामवासं
देवर्षिशिष्यं नितरां नमामि ॥ २॥
भगवान् श्रीकृष्ण के करकमलों में सर्वदा परम सुशोभित चक्रराज श्रीसुदर्शन के अवतार और इस समस्त भूमण्डल पर जो श्रीनिम्बार्क रूप से सुविख्यात है । व्रजधाम में सदा विराजित, देवर्षिवर्य श्रीनारदजी के परमशिष्य आचार्यवर्य श्रीनिम्बार्क भगवान् को सर्वविधा अभिनमन करते हैं ॥ २॥
निम्बार्कमालोकसुमंञ्जुपुञ्जं
सर्वेश्वराऽऽराधननित्यलीनम् ।
राधापदाम्भोजसुगन्धभृङ्गं
स्वान्ते स्वकीये सततं स्मरामि ॥ ३॥
श्रीसनकादिसंसेवित गुञ्जाफलसम सूक्ष्मविग्रह रूप शालग्राम स्वरूप श्रीसर्वेश्वर जिनकी सेवा अपने गुरुवर्य देवर्षि श्रीनारद से जिन्होन्ने प्राप्त की । उनके मङ्गलमयी समाराधना में सतत अनुरक्त, वृन्दावनाधीश्वरी कृष्णप्रिया श्रीराधा सर्वेश्वरी के श्रीयुगलचरणाम्भोज की दिव्य सुगन्धि उसके समुपासक भृङ्ग रूप श्रीनिम्बार्क भगवान् उनकी अपने अन्तःकरण से निरन्तर वन्दना करते हैं ॥ ३॥
वेदान्त-सिद्धान्तसमस्तसार-
रहस्यविज्ञं युगकेलिमग्नम् ।
राधामुकुन्दाऽङ्घ्रिसरोजभक्ति-
प्रदायकं निम्बरविं भजामि ॥ ४॥
समग्र वेदान्त दर्शन के सिद्धान्त का जो समस्त सारतत्त्व है उसके वास्तविक रहस्य के परम मर्मज्ञ वृन्दावननिकुञ्जविहारी श्यामाश्याम श्रीराधाकृष्ण की रहस्यमयी निकुञ्जलीला के ध्यान में अभिरत और उन्हीं युगलकिशोर श्रीराधामुकुन्द की श्रीयुगलचरणकमल की रसभक्ति को प्रदान करने में तत्पर ऐसे श्रीनिम्बार्क भगवान् का हम भजन करते हैं ॥ ४॥
गोदावरीकूलधृतावतारं
लसत्तुलस्या शुभमाल्यकण्ठम् ।
आचार्यवर्यं हरिचक्रराजं
निम्बार्कमाद्यं मनसा स्मरामि ॥ ५॥
भारतवर्ष के दक्षिणाञ्चल भूभाग पर गोदावरी-गङ्गा पावनतटवर्ती पैठन निकटस्थ मूङ्गी ग्राम के अरुणाश्रम में माता जयन्ती पिता श्रीअरुण महर्षि के यहाँ जिन सुदर्शनचक्रावतार श्रीनिम्बार्क भगवान् ने नियमानन्द के रूप में अवतार धारण किया । जिनके कण्ठप्रदेश में तुलसी की कण्ठी परम कमनीय सुशोभित है, ऐसे श्रीहरि चक्रावतार आद्याचार्यवर श्रीनिम्बार्क भगवान् का अपने अन्तर्मन से स्मरण करते हैं ॥ ५॥
व्रजस्थगोवर्धनसन्निधाने
निम्बाश्रमग्रामतपोवने च ।
निम्बार्कमाचार्यवरेण्यरूपं
नमामि साष्टाङ्ग विधानतोऽहम् ॥ ६॥
व्रज की दिव्य धरा पर अति कमनीय गिरिराज श्रीगोवर्धन के अति समीप निम्बाश्रम-तपोवन (निम्बग्राम-तपःस्थली) पर सुन्दर स्वरूप से नित्य विराजित आद्याचार्यवर्य श्रीनिम्बार्क भगवान् को शास्त्र विधान पूर्वक साष्टाङ्ग प्रणाम समर्पित करते हैं ॥ ६॥
श्रीचन्दनेनाऽङ्कित भालदेशं
सदा रतं वैष्णवताप्रचारे ।
कृपैकधाम श्रुतिशास्त्रधीरं
निम्बार्कमीशं हृदि भावयामि ॥ ७॥
गोपीचन्दन के ऊर्ध्वपुण्ड्र तिलक से जिनका सुन्दर भव्य ललाट परम प्रकाशमान है और वैष्णवता के प्रचार-प्रसार में सदा अभिनिरत, श्रुति-स्मृति-सूत्र-तन्त्र-पुराणादि समग्रशास्त्रों के परम मेधावी, कृपा के धाम श्रीनिम्बार्क
भगवान् की मङ्गलमयी भावना अपने हृदय में करते हैं ॥ ७॥
सामीप्यमुक्तीश्वर-भक्तिदान-
परायणं निम्बदिनेशरूपम् ।
नित्यं शरण्यं सुख-शान्तिकार-
माचार्यवर्यं प्रणमामि शश्वत् ॥ ८॥
भगवद्भावापत्तिरूप सामीप्य मोक्ष एवं श्रीराधा-सर्वेश्वर की दिव्य पराभक्ति प्रदान करने वाले, परम सुख और अविचल शान्ति के प्रदाता एकमात्र सदा परम शरण्य आचार्यवर्य श्रीनिम्बार्क भगवान् के श्रीचरणारविन्दों में निरन्तर (सश्रद्ध कोटि-कोटि साष्टाङ्ग प्रणाम समर्पित करते हैं ॥ ८॥
सर्वेश्वरप्रदं स्तोत्रं निम्बार्कवन्दनाष्टकम् ।
राधासर्वेश्वराद्येन शरणान्तेन निर्मितम् ॥ ९॥
श्रीसर्वेश्वर प्रभु का कृपाप्रसाद देने वाला यह श्रीनिम्बार्क-वन्दनाष्टक स्तोत्र उन्हीं श्रीनिम्बार्क भगवान् के मङ्गल अनुग्रह से उन्हीं की सेवा में प्रस्तुत हैं ॥ ९॥
इति श्रीनिम्बार्कवन्दनाष्टकं सम्पूर्णम् ।
Proofread by Mohan Chettoor