गोरखनाथाष्टकम्
अष्टाङ्गयोगनिधि अन्ध विनाशकर्ता
वेदान्तसार सुख साधक क्लेश हर्ता ।
त्रिशूल धृक् शिव-मृड-करुणा करेश
वन्दे समस्त गुरु गोरखनाथ तुभ्यम् ॥ १॥
भिषक परात्पर महेश्वर सर्व व्यापी
ॐकाररूप प्रणवात्मक ध्यानगम्य ।
दाता दयाकर सनातनधर्म धाम
धेयः महापुरुष गोरखनाथ तुभ्यम् ॥ २॥
बद्धोऽस्मि हे पशुपते ! जगमोहजाले
हे नाथ ! मामपिविलोकय दीनवन्धो ।
तापं मदीय मनसोहर अक्षमाली
वन्दे महापुरुष गोरखनाथ तुभ्यम् ॥ ३॥
आनन्दरूप ध्रुव-ताण्डव नृत्यकारी
इष्टो विशिष्ट जगपालक हे कपाली ।
दिग्वस्त्रकाय विधु-भास्कर अग्नि नेत्र
धेयः महापुरुष गोरखनाथ तुभ्यम् ॥ ४॥
व्याघ्राम्बरा श्रवण दर्शन दर्शनीय
आनन्दमूल अखिलेश्वर अप्रमेय ।
सर्वोत्तमोत्तम प्रभा भवरोग हारी
वन्दे महापुरुष गोरखनाथ तुभ्यम् ॥ ५॥
सम्पूर्ण शास्त्रमय श्री अवधूत सिद्ध
योगेश योगविषयातिव सु-प्रसिद्ध ।
गोर्खेश हे ! सकल कारण शान्त मूर्ते !
धेयः समस्त गुरु गोरखनाथ तुभ्यम् ॥ ६॥
स्वयं प्रकाश शुभ स्वस्तिदः षट् गुणेश
कल्याणदा अभयदा शिव ज्ञान गम्य ।
ब्रह्मादिदेव वर वन्दित साधु-साध्य
वन्दे महापुरुष गोरखनाथ तुभ्यम् ॥ ७॥
संसार-सम्प्लव विमोचन वन्दनीय
गोवंश रक्षक प्रवर्धक मूल त्राण ।
विद्येश नर्तक-स्वतन्त्र अमोघ वीर्य
धेयः समस्त गुरु गोरखनाथ तुभ्यम् ॥ ८॥
इति गोरखनाथाष्टकं सम्पूर्णम् ।
रचयिता - कवि नेत्रमणि आचार्य, गोरखा
गोरक्षनाथाष्टकं
Encoded and proofread by Chandrasekhar Karumuri